अलफ़ाज़ ही नहीं अब दर्मिया हमारे ...
ये वक़्त का कैसा ज़ेहर हुआ ..
यूँ मिलकर जुदा हुए दो दिल अपने ...,
जाने ख़ुदा का ये कैसा हमपर केहर हुआ ...!!
यूँ तो हजारों से ताल्लुख छूटे अपने, कोई फर्क न पड़ा...,
पर जाने क्यूँ छूट कर तुझसे ...,
वीरां सा ये सारा शहर हुआ ...!!!!
ये वक़्त का कैसा ज़ेहर हुआ ..
यूँ मिलकर जुदा हुए दो दिल अपने ...,
जाने ख़ुदा का ये कैसा हमपर केहर हुआ ...!!
यूँ तो हजारों से ताल्लुख छूटे अपने, कोई फर्क न पड़ा...,
पर जाने क्यूँ छूट कर तुझसे ...,
वीरां सा ये सारा शहर हुआ ...!!!!
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