मैंने सोचा ये बड़े गौर से ..
गुज़र के हर एक दौर से...,
के ज़िन्दगी क्या है...
ये रासतां है निकला हुआ उलझनों के हर मौड़ से...,
लहरों का सफ़र है जो ख़त्म होता है टकराकर किसी छौर से...,
ये साँसे होती है थके मुसाफिर की जो चलती है ज़ोर-ज़ोर से...,
एक डोर है जो खिंची जाती है कभी इस ओर से कभी उस ओर से...,
कोई मुकाबला हो जैसे जो शुरू भी होता हो और ख़तम भी एक दौड़ से...,
बोहुत ढूंडा ज़माने की भीड़ में रुबरुं होकर हर शौर से...,
दोस्त तुम भी सोचो जवाब इस सवाल का ...
ज़रा गौर से और गुज़र के किसी दौर से...!!!!
$almAn....
गुज़र के हर एक दौर से...,
के ज़िन्दगी क्या है...
ये रासतां है निकला हुआ उलझनों के हर मौड़ से...,
लहरों का सफ़र है जो ख़त्म होता है टकराकर किसी छौर से...,
ये साँसे होती है थके मुसाफिर की जो चलती है ज़ोर-ज़ोर से...,
एक डोर है जो खिंची जाती है कभी इस ओर से कभी उस ओर से...,
कोई मुकाबला हो जैसे जो शुरू भी होता हो और ख़तम भी एक दौड़ से...,
बोहुत ढूंडा ज़माने की भीड़ में रुबरुं होकर हर शौर से...,
दोस्त तुम भी सोचो जवाब इस सवाल का ...
ज़रा गौर से और गुज़र के किसी दौर से...!!!!
$almAn....