Friday 27 December 2013

मैं खुद को ही आज भूल गया ...

मै निकल पड़ा अनजानी राहो पर ढूंढ़ने दुनिया के हीरे ...
होकर बेपरवाह छोड़ चला पीछे यादों के ज़ख़ीक्रे...,
मै ख्वाब लिए कल के आज को दफ़नाने लगा ...,
वो शहर मेरा वो यार मेरे , सब छूट गए अब धीरे धीरे ...!!

तक़दीर कि बदलती रफ़्तार में ये ज़मान मेरा झूल गया ...
क्या हक़ीक़त थी मेरी क्या शख्सियत थी मेरी...,
मैं खुद को ही आज भूल गया ...!!

न जाने कितनी मोहलत मिली मुझे ख़ुदा से ...
बेफिकर हो दुनिया में सौ बरस को जीने लगा  ...,
कभी हसंते कभी रोते लम्हों को ज़िंदगी से पीने लगा ...,
बातें अधूरी सी रही ,खोयी खोयी सी कही ...!!

कोई इंतज़ार आज भी करता है उन गलियों में मेरा...
टकटकी बांध्कर रखता है नज़रों का पहरा ...,
आहात भी मिलती है कोई तो चहक उठता है दिल उसका...,
आरज़ू में देखने मेरा चेहरा...,
पर हर मेहनत उसकी ज़ाया जाती है ...,
क्यूँकि हमे उसकी और उसे हमारी सिर्फ याद ही आती है ...,
खुदगर्ज़ी के मारे हमने उसे भी ठुकरा दिया ...,
देख हालत हमारी ज़माने ने भी हमपर मुस्कुरा दिया ...!!

 रेह रेह्कर अब यही ख़याल ज़ेहन में आता है...
वाकई बड़ा दूर निकल आया मै ढूंढ़ने दुनिया के हीरे ...!!!!



                                                            $almAn...